Thursday, September 18, 2008

क्या भूलूँ, क्या याद करूँ?

इस दिल में बस कर देखो तो , ये शहर बड़ा पुराना है.......
हर साँस में कहानी है, हर साँस में अफसाना है ,
ये शहर बड़ा पुराना है.......

सी डी पर ये गीत सुनते हुए , अमेरिका के इस बड़े शहर की बड़ी सडकों पर सौ की रफ़्तार से गाड़ी चलाते हुए , मैं सोच रही थी , सचमुच ये दिल एक बहुत पुराना शहर है | बार बार उजड़ता है, फिर बसता है... दुबारा उजड़ने के लिए, रंगीनी छाती है तो अपने साथ पतझड़ साथ ही ले कर आती है | फिर भी उसी लय के साथ, धड़कन के साथ, दिल गीत गाता ही रहता है | ये दिल भी सही चीज़ है , है नहीं क्या ?
कल ही की तो बात है , सोनी कह रही थी , यार तुम भी कमाल हो , तुम्हें तो एक किताब लिखनी चाहिए |
मैंने पूछा ऐसा क्या है जिसपर लिखूं , किसपर लिखूं ? तो सोनी ने बिना सोचे ही बोल दिया था अरे ! अपने आप पर लिखो , यार जितना तेरे पास रौ मटेरिअल है, उसपर एक किताब क्या , दस किताब भी कम पड़ेंगे |
सोनी मेरे बचपन की सहेली है मुझे जानती है, शायद मुझसे भी ज़्यादा |
सहेली से कहना एक बात है , पर सारी दुनिया को कहना ... पता नहीं ....

वैसे भी क्या कहूँगी सबसे ? कौनसी बात कहूँ और क्या छुपाऊँ ? कितनी हद तक मुझे याद करने की कोशिश करनी चाहिए? शायद ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मुझे भूल जानी चाहियें | आखिर किसे अच्छी लगती हैं गन्दी बातें ? सब हँसता चेहरा और उगते सूरज को पसंद करते हैं | ये याद नहीं रहता की यही सूरज कहीं से डूबा होगा तभी तो यहाँ उगा है , नहीं जान पाते हैं लोग | लोग बहुत जल्दी सब बातें भूल जाते हैं |
पर मैं नहीं भूली हूँ , एक एक बात याद रहती है मुझे | हर बात | पर सबको कैसे कह पाऊँगी सब बातें ? हिम्मत नहीं है? हिम्मत तो है पर

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